जीके पिपिल
देहरादून।
गीत
मैं क़तरा हूं और तन्हा हूं
अपनी जलधार में ले लो मुझे
लावारिश हूं बेक़ब्जा भी
अपने अधिकार में ले लो मुझे
मैं पतझर हूं और सेहरा हूं
सदियों से राह में ठहरा हूं
मैं सागर हूं बिन पानी का
कहने को ज़्यादा गहरा हूं
आलिंगन में मुझको लेकर
अपनी बहार में ले लो मुझे
मैं क़तरा…..
गीली लकड़ी का धुंआ सा
बेक़ार में छाए कुहासा सा
सूखे में ओस की कुछ बूंदें
परछाईं सी कोई साया सा
अस्तित्व मिटा दो अब मेरा
और अंधकार में ले लो मुझे
मैं क़तरा…..
एक सदमा हूं संताप कोई
आशीर्वाद नहीं श्राप कोई
प्राश्चित होता तो कर लेता
मैं आधा हूं पश्चाताप कोई
अब करें मुझे भी परिवर्तित
फ़िर से संहार में ले लो मुझे
मैं क़तरा…..
21/03/2025
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