January 8, 2025

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तारा पाठक की सुंदर रचना… मां तेरा आंचल

तारा पाठक, उत्तराखंड

माँ तेरा आँचल

मैं छोटी सी लतिका
इतराती_बलखाती बढ़ती।

तूफ़ानों की खिल्ली उड़ाती
झंझा से नज़रें लड़ाती।

झुलसाती लू का खौफ न मुझ पर
अंधड़ का कुछ रौब न मुझ पर।

अतिवृष्टि मुझ तक पहुंच न पाती
अनावृष्टि मुझे न अकुलाती।

पतझड़ में मैंने मधुमास पाया
फूलों के झूलों ने मुझे झुलाया।

क्योंकि मेरे सिर पर है_
वटवृक्ष सा सामर्थ्य वान
“माँ तेरे आँचल का साया।”

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