पुष्पा जोशी ‘प्राकाम्य’
शक्तिफार्म, सितारगंज,
उधमसिंहनगर उत्तराखंड
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वीर भड़ कफ्फू चौहान
विजय पताका लहराई है, वीर भड़ बलवान की,
गाथा तुम्हें सुनाएँ बलिदानी कफ्फू चौहान की।
स्वाभिमानी वीर कहाँ रोके से किसी के रुकता था,
माता के सम्मानित हित आगे न किसी के झुकता था।
दुस्साहसी अजयपाल गढ़वाल में शासन करता था,
उच्चाकाँक्षा इतनी सब राज्यों की चाहत करता था।
पूछा सेनापति से कितने राजा हैं आधीन हुए,
कितने राजा बंदी बने और कितने वैभवहीन हुए।
सेनापति बोला महाराज! राजा सब आधीन हैं,
केवल कफ्फू करे अवज्ञा बुद्धिबल से हीन है।
उप्पू गढ़पति कफ्फू को राजा अजय झुका नहीं पाएगा।
यही गर्जना है उसकी वह नई क्रांँतियाँ लाएगा।
चीखा तब सम्राट अजय क्या इतनी हिम्मत उसकी है!
नहीं जानता कफ्फू अजय को ना कभी नहीं सुननी है।
सेनापति अविलंब अभी तुम सेना को तैयार करो,
पल भर में उस हठधर्मी के गढ़ पर चढ़कर वार करो।
जीवित कफ्फू इसी युद्ध में बंदी बनाया ही जाए,
जीवित ही उसको चरणों में मेरे गिराया ही जाए।
शस्त्रों की टंँकार हुई सेना पल में तैयार हुई।
अजय पाल की जय-जय करती सेना सरहद पार हुई।
कफ्फू ने भी युद्ध का अपनी सेना को आदेश दिया,
वंदे मातरम् के नारों से पावन था परिवेश किया।
माता को हो नतमस्तक थी कफ्फू ने आज्ञा मांँगी।
माता के आशीष-दुआ की कवच- ढाल उसने मांँगी।
आयुष्मान भव! और यशस्वी! माता ने आशीष दिया,
मोह त्याग प्राणों का उप्पू गढ़ रक्षा का आदेश दिया।
वंदे मातरम्-वंदे उप्पू गढ़ माता ने जय घोष किया,
तिलक विजय का कर माता ने सेना को नव जोश दिया।
वीर सैनिकों! चलो बज्र की भांँति शत्रु पर टूट पड़ो,
निज गौरव-सम्मान की खातिर शत्रु शिविर की लूट करो!
आमने-सामने सेनाएँ थीं आँखों में अंँगार लिए,
खोलते खून के वस्त्र थे पहने, शस्त्रों का शृँगार किए।
भीषण ज्वाला भड़क उठी जब युद्ध भूमि में शंँख बजे,
अमित जोश में भर कर सैनिक युद्ध भूमि में कूद पड़े।
भाले, बर्छी, तीर और तलवारों की टंँकारें थीं,
भिड़े युद्ध में सैनिक सबने भरी बड़ी हुंँकारें थीं।
अजयपाल के सैनिक अनगिन हा-हाकार मचाते थे,
थोड़े-से सैनिक कफ्फू के वज्र भाँति टकराते थे।
पर विशाल सेना से वे भी कब तक टक्कर ले पाते,
वीर सिपाही एक-एक कर बलिवेदी चढ़ते जाते।
बंदी बनाकर कफ्फू को अजय के सम्मुख जब लाए,
तेज सूर्य-सा चमक रहा था मातृभूमि के गुण गाए।
अजय बोला कफ्फू से आधीनता स्वीकार करो,
बदले में तुम मुझसे अपने जीवन का उपहार लो।
वीरबली हम उप्पू गढ़वासी मरने से कब डरते हैं,
मातृभूमि की रक्षा के हित वरण मृत्यु का करते हैं।
मेरे जीवित रहते तेरे हाथ न उप्पू गढ़ आएगा,
बच्चा-बच्चा मातृभूमि हित अपनी बलि चढ़ाएगा।
क्रोधित अजयपाल चिल्लाया आगबबूला-सा होकर,
प्यास कृपाण की शांँत करो तुम खून से इसके धोकर,
शीश उतारो इसका ऐसे गिरे चरण मेरे आकर,
फिर ना आए मेरे आगे कोई अपना शीश उठाकर।
तत्परता से सैनिक ने तलवार खींचकर थी तानी,
तान के सीना खड़ा हुआ था वह था कफ्फू बलिदानी।
झटका कफ्फू ने गर्दन को वार जो गर्दन पर आया,
शीश गिरा गंगा में जाकर थूक अजय के मुंँह आया।
मुंँह पर अपने थूक देखकर अभिमानी था चकराया,
शूरवीरता लख कफ्फू की करनी पर था पछताया।
कभी-कभी ही वीर सिंह से धरती पर पैदा होते,
होती धन्य धरा की माटी धन्य सदा ही जन होते।
वंदे मातरम् , वंदे कफ्फू! अजय तुम्हीं पर झुकता है,
करे वंदना मातृभूमि की, नमन तुम्हें भी करता है
वंदे मातरम्-वंदे मातरम्, कफ्फू तुम्हें नमन, कफ्फू तुम्हें नमन।
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