December 25, 2024

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दीपावली पर विशेष: वरिष्ठ कवि/शाइर जीके पिपिल की एक सुन्दर रचना … कहीं ऐसी भी दीवाली है

जीके पिपिल
देहरादून, उत्तराखंड


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कहीं ऐसी भी दीवाली है

बाज़ार भरे हैं खुशियों से
और जेब किसी की खाली है
कहीं ऐसी भी दीवाली है।

कहीं दूर देश में साजन हैं
और तन्हा घर में घरवाली है
कहीं ऐसी भी दीवाली है।

द्वारे पर लड़ियां लटके हैं
और अंदर घर में बदहाली है
कहीं ऐसी भी दीवाली है।

कहीं बाहर पड़ी मिठाई है
तो कहीं रोटी का सवाली है
कहीं ऐसी भी दीवाली है।

कहीं थाल भरे हैं फूलों से
कहीं सूखी पेड़ों पर डाली है
कहीं ऐसी भी दीवाली है।

है तिथि एक मगर सबको
कहीं स्वेत और कहीं काली है
सबकी अपनी दीवाली है।

जो जैसा भी है सभी को
दीवाली की शुभ कामनाएं!
सबके घर में उजियारा हो
घर मेरा हो या तुम्हारा हो।

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