-सिंगल यूज़ प्लास्टिक के उन्मूलन हेतु पर्यटकों एवं स्थानीय जनसमुदाय के बीच जागरूकता उत्पन्न करने आगे आये बुरांसखंडा इण्टर कॉलेज के छात्र।
कमलेश्वर प्रसाद भट्ट
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पर्यटन स्थल मसूरी-धनौल्टी पिकनिक मनाने आने वाले पर्यटक अक्सर प्लास्टिक की बोतलें और अन्य सामग्री को यूँ ही सड़क किनारे व खाली स्थान पर फेंक देते हैं। यहाँ तक कि बची हुई खाद्य सामग्री को भी जहाँ-तहाँ सड़क किनारे ही छोड़ देते हैं, जिससे पेड़-पौधों के साथ ही जंगली जानवरों विशेषरूप से बन्दरों को भारी नुकसान पहुँचता है।
प्लास्टिक की बोतलों व अन्य कूड़े से यहाँ की सुंदरता पर ग्रहण सा लग रहा है। राष्ट्रीय महत्व के कार्यक्रम में पर्यावरण संरक्षण हेतु योगदान देने स्थानीय इण्टर कॉलेज बुरांसखंडा के स्वयंसेवी छात्रों ने स्थानीय जनसमुदाय के सहयोग से जागरूकता अभियान चलाकर प्लास्टिक उठाकर वातावरण सृजन किया। वहीं, पर्यटकों से एकल-उपयोग प्लास्टिक (SUP) के कम उपयोग करने की अपील करते हुए स्वच्छता अभियान को सफल बनाने का संदेश भी दिया। बच्चों को जानकारी दी गई कि उत्तराखंड में नरेन्द्रनगर वन प्रभाग के हर्बल गार्डन मुनिकीरेती पौधशाला में दिसम्बर 2019 से ‘प्लास्टिक-पॉलिथीन’ बैग के विकल्प के रूप में ‘जूट बैग’ एवं ‘नॉन ओवन’ आदि विकल्पों पर अनुसंधान किया जा रहा है।
वर्तमान में हमारे सामने प्रदूषण रहित पर्यावरण की सबसे बड़ी चुनौती है। ऐसा नहीं कि इससे मुक्ति के प्रयास न किये गए हों, देश को स्वच्छ एवं स्वस्थ बनाने हेतु कृतसंकल्पित माननीय प्रधानमंत्री जी के सपनों को साकार करने में जाने माने पर्यावरणविदों के साथ आमजन ने भी सहभागिता का संकल्प लिया है। कहते हैं, कि जब भी किसी शुभ कार्य की शुरूआत होती है तो कुछ अदृश्य शक्तियां विघ्न-बाधाएं अड़चने डालकर मार्ग को अवरुद्ध करने की कोशिश करती हैं। कुछ ऐसे ही हुआ यहाँ भी, उत्तराखंड में ‘हिमालय बचाओ, पॉलिथीन हटाओ’ संकल्पना के साथ धरातल पर कार्य प्रारम्भ हुआ ही था कि कोरोना कॉल ने दखल डाल दिया।
स्वस्थ राष्ट्र की संकल्पना उस भू-भाग से होती है जिस पर उसके निवासी मानव समुदाय, पशु-पक्षी, वनसम्पदा एवं सम्पूर्ण प्रकृति भयमुक्त हो आनंदपूर्वक जीवन निर्वहन करते हैं। वह अपने जीवनक्रम की घड़ी का, कालचक्र की घड़ी से तालमेल बिठाते हैं। किसी भी राष्ट्र के विकास में उसके निवासी, वहाँ की शस्य-श्यामला धरती, कल-कल बहती नदियाँ और वहाँ का आर्थिक व सामाजिक ढाँचा महत्वपूर्ण होता है। इसलिए उनको स्वस्थ रहना भी आवश्यक होता है। निवासी स्वस्थ हैं तो सम्पूर्ण राष्ट्र, जो प्रतीकात्मक मानवीयकरण का द्योतक है, वह भी स्वस्थ होगा। स्वस्थता कहाँ से आती है, कौन है स्वास्थ्य की जननी? स्वच्छता! स्वच्छता ही स्वास्थ्य की जननी है। कहावत भी हैं,
स्वच्छ रहेगी धरती, तब स्वस्थ रहेगा तन-मन
जीवन सुमन खिलेगा, पुलकित होगा नवयौवन
जहाँ तक आज हम भारत को समूचे विश्व के साथ अंतरिक्ष हो अथवा परमाणु कार्यक्रम में विश्वगुरू बनकर वैश्वीकरण के परिदृश्य में अच्छी स्पर्धा में पाते हैं, वहीं स्वास्थ्य के आंकड़े हमारे मस्तिष्क पर चिन्ता की लकीरें खींच डालते हैं। जी हाँ, इसके लिए आज सबसे ज्यादा जिम्मेदार है तो वह है ‘पालीथिन-प्लास्टिक’। हम सपना ही तो देख रहे हैं ‘स्वच्छ भारत का’, ‘स्वस्थ भारत’ का और ‘श्रेष्ठ भारत’ का। पालीथिन और प्लास्टिक का प्रयोग तो अब विध्वंशकारी परिणामों को भी पार कर गया है। महानगरों में तो ये हाल हैं कि निकासी की जगहों पर बोरे भर भर कर प्लास्टिक जमा है। निकासी बंद और नालियाँ चारों तरफ चोक।मूसलाधार बारिश होते ही पूरा शहर जलमग्न। सरकारी प्रयास भी नाकाफी साबित हो जाते हैं तब। माननीय न्यायालय द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया है ‘प्लास्टिक-पालीथीन’। किन्तु जब तक इसके वैकल्पिक प्रयोग प्रयोग का प्राविधान नहीं होगा, तब तक यह समस्या जस की तस बनी रहेगी। यहाँ पर हमें चिन्तन करने की आवश्यकता है। आखिर जब दुनिया में प्लास्टिक ईजाद नहीं हुआ था, तब भी तो लोग काम चलाते थे।
जूट के प्लास्टिक की तुलना में कई अन्य फायदे भी
‘जूट’ प्राकृतिक फाइबर होता है जो बहुत मजबूत, उच्च गुणवत्तायुक्त एवं टिकाऊ पदार्थ है। ‘जूट’ द्वारा बनाये गए प्रोडक्ट प्राकृतिक सामग्री है जो आसानी से अपघटित हो जाता है। यह प्रकृति को किसी भी प्रकार की क्षति नहीं पहुँचाते। मुख्य बात यह है कि ‘जूट’ बैग में रखा गया सामान इधर-उधर लाने व ले जाने पर हाइजैनिक भी नहीं होते। अर्थात प्लास्टिक की तरह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं होता। प्लास्टिक बैग बायो- डिग्रेडेबल नहीं होने के कारण अपघटित होने में बहुत समय लेता है, यहाँ तक कि 100 वर्ष भी लग जाते हैं। इसी कारण प्लास्टिक से बने उत्पाद सीवरेज सिस्टम को बन्द कर देते हैं, साथ ही पर्यावरण को बहुत क्षति पहुँचता है।
‘बॉयो बैग’ का किया जा रहा इस्तेमाल
उप प्रभागीय वनाधिकारी मनमोहन सिंह बिष्ट एवं नरेन्द्रनगर वन प्रभाग के स्टॉफ द्वारा ‘पॉलिथीन बैग’ के उन्मूलन हेतु सतत प्रयास किया जा रहा है। उनके द्वारा वर्तमान में हर्बल पौधशाला में पौध उगाने हेतु ‘बॉयो बैग’ का इस्तेमाल किया जा रहा है। एसडीओ मनमोहन सिंह बिष्ट का कहना है कि “70 जी एस एम” के नॉन वावन कपड़े से बने बैग को ‘बॉयो बैग’ कहा जाता है। उनका मानना है कि भले ही अभी इसकी कीमत ज्यादा आ रही हो, किन्तु यदि बड़े पैमाने पर बॉयो बैग का निर्माण किया जाय तो प्रति बॉयो बैग की दर को और भी कम किया जा सकता है, जो भविष्य में पॉलिथीन बैग का विकल्प हो सकता है।
25 करोड़ पॉलिथीन बैग का उपयोग
अनुमान के अनुसार प्रति वर्ष वन विभाग, विभागीय पौधशालाओं में पौध तैयार करने हेतु लगभग 25 करोड़ पॉलिथीन बैग का उपयोग करता है। कटु सत्य है कि तैयार पौधों का जंगल, फार्महाउस, कार्यालयों अथवा निजी घरों में उपयोग के बाद इनके बैग्स ऐसे ही धरती पर इधर-उधर छोड़ दिए जाते हैं। अब यदि एक वर्ष का अनुमान लगाया जाय तो 35 करोड़ पॉलीबैग का पिछले 10 वर्ष में उपयोग करने के बाद हमनें कितना प्लास्टिक इस धरती पर छोड़ा या कूड़ा किया होगा, सोचनीय है।
बायो बैग का उत्पादन एक अभिनव प्रयोग
इस प्रकार फॉरेस्ट नर्सरियों में प्लास्टिक पॉलिथीन बैगों के स्थान पर ‘इको-फ्रेंडली’ बायो बैग का उत्पादन एक अभिनव प्रयोग है, जो पर्यावरण एवं प्रकृति के लिए एक वरदान साबित होगा, ऐसा विश्वास है।
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