April 22, 2025

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जीके पिपिल की गजल … अपने हुनर से आज कुछ ऐसा क़माल कर

जीके पिपिल
देहरादून

गज़ल

अपने हुनर से आज कुछ ऐसा क़माल कर
तेरे पास दीए की लौ है उसको मशाल कर।

जब तक वक़्त से तुझे जवाब नहीं मिलता
बार बार पसीना बहा बार बार सवाल कर।

अस्मिता की शर्त पर समझौता नहीं होता
फ़ैसला भी नहीं होता सिक्का उछाल कर।

कोशिश करना कि बात शांति से की जाए
बात नहीं सुने तब ही किसी से बवाल कर।

रिश्तों की जड़ों में मोहब्बत का पानी देना
वरना पत्ते भी नहीं आते हैं सूखी डाल पर।

धन की दरकार तो प्यार के लिए भी होगी
उसके लिए भी रख ले अलग निकाल कर।

शिकार की ज़िंदगी बची थी जो भाग गया
निशाना चूका है तो ना ग़म ना मलाल कर।

प्यार मिले न मिले उसकी झलक तो मिले
कम से कम इतनी गुंजाइश तो बहाल कर।

अब जीवन का मंत्र जैसे को तैसा बना लो
जो तेरा कर दे तू उसका जीना मुहाल कर।

तारीख़ में बहादुरी के बहुत से हवाले होंगे
अब उनको पढ़कर ख़ुद को बेमिसाल कर।

भले अंज़ाम सूली टंगी हो नज़र के सामने
पर ग़लत को ग़लत कहने की मज़ाल कर।

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