जीके पिपिल
देहरादून।

कामना
कोई दिल कोई बस्ती कोई डेरा ना रहे
अब की दीवाली में कहीं अंधेरा ना रहे।
आज हम तुम के सारे अंतर मिट जाएं
समाज में कोई भी मेरा या तेरा ना रहे।
भले कोई रात चांद के बिना बीत जाए
मगर सूरज के बिन कोई सवेरा ना रहे।
प्रीत कुछ ऐसे रच बस जाए जग में कि
सभी लुटने वाले हों कोई लुटेरा ना रहे।
दीवाली की इस खुशी को जाने ना दो
उसका स्थाई हो क्षणिक बसेरा ना रहे।।


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