सुभाष चंद वर्मा
रक्षा अधिकारी (से.नि.)
विजय पार्क, देहरादून
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हे ‘महामानव’ तुझे प्रणाम
कभी प्यासा, कभी भूखा रहकर
तिरस्कार की, पीड़ा सहकर
रहने का, नहीं ठौर-ठिकाना
‘निर्बल’ मानव, ‘निर्मल’ रहकर
जीवन भर, करता ‘श्रम- दान’
हे ‘श्रम-जीवी’, तुझे ‘प्रणाम’
सीमा पर ‘आतंक’ खड़ा है
रक्षा का ‘संकल्प’ बड़ा है
‘भारत माँ’ का वीर सिपाही
‘शत्रु’ से, हर बार भिड़ा है
करता है, ‘जीवन’ बलिदान
हे ‘मातृ-रक्षक’, तुझे ‘प्रणाम’
जीता, खुद को ‘अभाव’ में रखकर
बेटों को ‘सुख-सुविधाओं’ में रखकर
‘सपने’ सबके, ‘साकार’ बनाता
रोज ‘कड़ी- मेहनत’ से थककर
‘वृद्धाश्रम’ में, कटती ‘शाम’
हे ‘कर्म-योगी’, तुझे ‘प्रणाम’
‘जंगल’ में ‘संघर्ष’, बड़े हैं
‘खतरे’ में, ‘वर्चस्व’ पड़े हैं
‘दरख्तों’ से ‘लिपट-चिपट’ कर
‘बहुगुणा’, ‘सुंदर लाल’ खड़े हैं
खूब चलाया, ‘पेडों की रक्षा’ का ‘अभियान’
हे ‘महामानव’, तुझे ‘प्रणाम’
हे ‘महामानव’, तुझे ‘प्रणाम’
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