जय कुमार भारद्वाज
देहरादून, उत्तराखंड
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भटक गया अंधी गलियों में
आकर अपने गांव से।
दूर हुआ माँ की ममता से
और पीपल की छांव से।।
बचपन के सब संगी साथी
दूर बहुत अब छूट गये
महानगर की चकाचौंध में
स्वपन सुनहरे टूट गये
हारा मैं अपनी ही बाज़ी
खुद अपने ही दांव से..1
शाम सवेरे रोज़ वहाँk
दद्दा की बैठक होती थी
मिल बैठ सभी बतियाते थे
सुख दुख की चर्चा होती थी.
पथरीली राहों पर निकला
जूता मेरे पाँव से..2
चौराहे का बूढ़ा बरगद
संस्कृति की पहचान है
कृष्ण रूप पीपल में देखो
यह गीता का ज्ञान है
सुख आरोग्य सभी पाते हैं
हरे नीम की छांव से
दूर हुआ माँ की ममता से
और पीपल की छांव से…3..
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