सुलोचना परमार “उत्तरांचली”
देहरादून, उत्तराखंड
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ओ मेरे कान्हा
ओ मेरे कान्हा आ जाओ
लेके यहाँ कोई अवतार।
गाएं भूखी मर रही हैं तेरी
उन पर हो रहे अत्याचार ।
ओ मेरे कान्हा ……
कालिया नाग सब हो गए
इन्हे नथ डालो इस बार ।
कंस के वंशज बढ़ गए हैं
तुम कर दो इनका संहार ।
ओ कान्हा मेरे….
भरत भूमि पर हे मेरे कान्हा
सब खून के प्यासे हो रहे ।
बांसुरी की धुन सुना उन्हे भी
जो नफरत यहाँ पर बो रहे।
ओ मेरे कान्हा ..
कैसे कहूं हे कान्हा तुमसे
राधा रोए यहाँ जार जार ।
कोई बना दुशासन यहाँ तो
कोई दुर्योधन का अवतार ।
हे कान्हा मेरे….
पत्थर की मूरत बन बैठे
भक्तों की ना सुनो पुकार।
चक्र सुदर्शन लेके आओ
दुष्टों पर कर दो प्रहार ।
ओ मेरे कान्हा…
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