December 18, 2025

Uttarakhand Meemansa

News Portal

कवि/शाईर जीके पिपिल की गजल … जो कहते थे ना बदलेंगे कभी उनको भी बदलते देखा है

जीके पिपिल
देहरादून, उत्तराखंड


—————————————————–

गज़ल

जो कहते थे ना बदलेंगे कभी उनको भी बदलते देखा है
बगिया के माली को भी हमने फूलों को मसलते देखा है

होती है रज़ा जब कुदरत की लग जाता है तीर निशाने पर
उसकी मर्ज़ी के बिन सबकुछ हाथों से निकलते देखा है

जो कहते थे संन्यासी हैं हम कोई ऋषि मुनि ब्रह्मचारी हैं
एक हुस्न के जलवे के आगे उनको भी फिसलते देखा है

देखा तो नहीं है कुदरत को पर ख़ुदा की बात सुनी तो है
कुदरत की दुआओं के दम से पत्थर को पिघलते देखा है

ना खुदा नहीं पतवार नहीं और भंवर में अपनी कश्ती हो
फिर भी अकसर ही कश्ती को तूफ़ा से निकलते देखा है

फूल तो अकसर जलते रहते हैं सूरज की आतिशी धूप से
लेकिन हमने तो इंसानों को भी चांदनी से जलते देखा है

news