विनय अन्थवाल
देहरादून, उत्तराखंड
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मानसिक प्रेम
सुबह की पहली याद हो,
नए प्यार का एहसास हो।
दिल के मेरे तुम पास हो,
मन ही मन का संवाद हो।
मन का मधुर आलाप हो,
अंतर का उजास हो।
मन की निर्मल आस हो,
प्रेम का सद् भाव हो।
मन ही मन का प्यार हो,
मन में जला चिराग हो।
मेरे तपते हुए मन की,
तुम शीतल सी आस हो।
तुम आँखों की प्यास हो,
जीवन का मधुमास हो।
प्यार का गुलाब हो,
आँखों का सुंदर ख्वाब हो।
सुखद प्यार का एहसास हो,
निस्वार्थ प्यार का भाव हो।
दिल में मेरे झाँक लेना कभी
दिल को दिलसाज़ करती आप हो।
मन से मन का बंधन तुम हो,
कई जन्मों का संबंध तुम हो।
मेरा प्यार, इबादत वंदन तुम हो,
इस जीवन का कुंदन तुम हो।
निस्वार्थ प्यार का भाव हो तुम
परमार्थ का सद् भाव हो तुम।
पवित्र प्रेम का पूज्य भाव तुम,
स्त्रीत्व का सम्पूर्ण सार तुम।
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