जसवीर सिंह हलधर
देहरादून, उत्तराखंड
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गीत – मानव खुद का काल
मानव के कर्मों के कारण वातावरण सवाल रहा है।
अहंकार दुश्मन है इसका खुद ही खुद का काल रहा है।।
काट काट कर वृक्ष धरा के इसने वसुधा बाँझ बनायी।
धुँए के गुब्बार उड़ाकर इसने दूषित वायु बहायी।
साथ हमेशा दिया युद्ध का, क्षीण किया सिध्दांत बुद्ध का,
सत्य अहिंसा ढाल बनायी हाथ हमेशा भाल रहा है।।
मानव के कर्मों के कारण वातावरण सवाल रहा है।।1
घातक अस्त्र बनाये इसने रोज सिंधु में किये परीक्षण।
आसमान में भी घबराहट छोड़ उपग्रह किये निरीक्षण।
नवग्रह सारे डरे हुए हैं, चाँद सितारे डरे हुए हैं,
बेशक व्योम तलक पहुँचा है धरती बदहाल रहा है।।
मानव के कर्मों के कारण वातावरण सवाल रहा है।।2
सत्य अहिंसा मानवता को सच्चा ज्ञान नहीं दे पाए।
यज्ञ दया करुणा वाले भी खुशियां दान नहीं दे पाए।
युद्ध समस्या को सुलझाएं ,समाधान की ओर बढ़ाये,
युद्ध शांति की ढाल कभी तो कभी लहू का ताल रहा है।।
मानव के कर्मों के कारण वातावरण सवाल रहा है।।3
अब भी समय सँभल जा मानव दुनिया बच जाए जलने से।
सिंधु और आकाश डरे हैं अस्त्र, मिसाइल, बम, चलने से।
धरती पर भय ही भय अतिशय,विश्व युद्ध का छाया संशय,
“हलधर” का भारत उस कल को कूटनीति से टाल रहा है।।
मानव के कर्मों के कारण वातावरण सवाल रहा है।।4
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