जीके पिपिल
देहरादून, उत्तराखंड
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गज़ल
वो भरा पूरा दिखता है पर ख़ाली होता जा रहा है
समस्या का हर समाधान सवाली होता जा रहा है।
सिमटता जा रहा है वजूद ईमान का तीव्र गति से
जो हरा पेड़ था जैसे सूखी डाली होता जा रहा है।
ज़िंदगी उसकी एक उजड़ा चमन होती जा रही है
वो उस चमन का जैसे एक माली होता जा रहा है।
जितना अधिक खोजता है कोई सुकून पदार्थों में
उतना सुकून भी उसका खयाली होता जा रहा है।
अब शक्की और पाखंडी समाज में तो आजकल
सच की राह दिखाना भी दलाली होता जा रहा है।
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