पागल फ़क़ीरा
भावनगर, गुजरात
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तुम्हारी झील सी आँखें मुझे घायल बनाती हैं,
तस्वीर को देख क़लम ख़ुद ग़ज़ल बनाती है।
क़ुदरत की क्या तारीफ़ करूँ तुम्हारे सामने,
तुम्हारी यही सादगी तो मुझे पागल बनाती है।
सुंदरता की मूरत मुस्कान हो सदा चेहरे पर,
तुम्हारी यही अदा तो मुझे क़ायल बनाती है।
बिछवा, झाँझर, पायल की अब क्या ज़रूरत,
ये भीनी रेत तुम्हारे पाँव में छागल बनाती है।
तुम्हारे पहले दीदार के यही इन्तज़ार के पल,
हमारे दिलों में ख़ुशी की चहल पहल बनाती है।
मेरी मोहब्बत का हो एतबार तुम्हारे दिल में,
एहसास मेरे लिये ख़ुदा का फ़ज़ल बनाती है।
शुक्र है ख़ुदा का मेरा नाम तुम्हारे नाम के साथ,
तुम्हारी मौजूदगी झोपड़ी को महल बनाती है।
मेरे गीत ग़ज़ल बेअसर हैं तुम्हारी रूह के बग़ैर,
इन अल्फ़ाज़ों की धुन तुम्हारी पायल बनाती है।
बुलंद हौसला है मेरे हाथों की इन लक़ीरों पर,
सारी क़ायनात तुझे फ़क़ीरा की नेहल बनाती है।
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