व्रत उसी वार को किया जाता है, जिस वार को दीपावली हो
अहोई अष्टमी का व्रत अहोई आठे के नाम से भी जाना जाता है। यह व्रत कार्तिक मास की अष्टमी तिथि के दिन संतानवती स्त्रियां करती हैं। अहोई अष्टमी का पर्व मुख्य रूप से संतान की लम्बी आयु की कामना के लिये किया जाता है। इस पर्व के विषय में ध्यान देने योग्य बात यह है कि इस व्रत को उसी वार को किया जाता है। जिस वार को दीपावली हो। इसलिए इस वर्ष यह पर्व 17 अक्टूबर सोमवार के दिन मनाया जाएगा। इस वर्ष यह व्रत सर्वार्थ सिद्धि योग में पड़ रहा है। इसके अलावा सोमवार का दिन और अष्टमी तिथि ये दोनों इस व्रत को खास बना रही हैं।
अहोई अष्टमी व्रत विधि
अहोई व्रत के दिन व्रत करने वाली माताएं प्रात: उठकर स्नान करती हैं और पूजा पाठ करके संतान की दीर्घायु व सुखमय जीवन के लिए कामना करती है। माता अहोई से प्रार्थना करती है कि हे माता मैं अपनी संतान की उन्नति, शुभता और आयु वृद्धि के लिये व्रत कर रही हूं, इस व्रत को पूरा करने की आप मुझे शक्ति दें। यह कर कर व्रत का संकल्प लें, एक मान्यता के अनुसार इस व्रत को करने से संतान की आयु में वृद्धि, स्वास्थ्य और सुख प्राप्त होता है। माता पार्वती की पूजा भी इसके साथ की जाती है। क्योकि माता पार्वती संतान की रक्षा करने वाली माता कही गई है।
उपवास के दिन क्रोध करने से बचना चाहिए
उपवास करने वाली स्त्रियों को व्रत के दिन क्रोध करने से बचना चाहिए। उपवास के दिन मन में बुरा विचार लाने से व्रत के पुण्य फलों में कमी होती है। साथ ही व्रत वाले दिन, दिन की अवधि में सोना नहीं चाहिए। अहोई माता की पूजा करने के लिये अहोई माता का चित्र गेरुवे रंग से मनाया जाता है। इस चित्र में माता, सेह और उसके सात पुत्रों को अंकित किया जाता है। संध्या काल में इन चित्रों की पूजा की जाती है।
तारों को करवे से दिया जाता है अर्ध्य
सायंकाल की पूजा के बाद अहोई माता की कथा का श्रवण किया जाता है। इसके बाद सास-ससुर और घर में बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद लिया जाता है। तारे निकलने पर इस व्रत का समापन किया जाता है। तारों को करवे से अर्ध्य दिया जाता है और तारों की आरती उतारी जाती है। इसके बाद संतान से जल ग्रहण कर व्रत का समापन किया जाता है।
अहोई व्रत कथा
अहोई अष्टमी की व्रत कथा के अनुसार किसी नगर में एक साहूकार रहता था, उसके सात बेटे थे। दीपावली आने में केवल सात दिन शेष थे, इसलिये घर की साफ -सफाई का काम चल रहा था। साहूकार की पत्नी घर की लीपा-पोती के लिये नदी के पास की खादान से मिट्टी लेने गई। खदान में जिस जगह मिट्टी खोद रही थी, वहीं पर एक सेह की मांद थी। स्त्री की कुदाल लगने से सेह के एक बच्चे की मृ्त्यु हो गई। यह देख साहूकार की पत्नी को बहुत दु:ख हुआ। शोकाकुल वह अपने घर लौट आई। सेह के श्राप से कुछ दिन बाद उसके बड़े बेटे का निधन हो गया, फिर दूसरे बेटे की मृ्त्यु हो गई और इसी प्रकार तीसरी संतान भी नहीं रही। एक वर्ष में उसकी सातों संतान मृत्यु को प्राप्त हो गई।
सभी संतानों की मृत्यु के कारण वह स्त्री अत्यंत दु:खी रहने लगी। एक दिन उसने रोते हुए अपनी दु:ख भरी कथा पड़ोस की महिलाओं को बताई, कि उसने जान-बूझकर पाप नहीं किया है। अनजाने में उससे सेह के बच्चे की हत्या हो गई थी, उसके बाद मेरे सातों बेटों की मृत्यु हो गई, यह सुनकर पड़ोस की वृ्द्ध महिला ने उसे दिलासा दिया। कहा कि तुमने जो पश्चाताप किया है उससे तुम्हारा आधा पाप नष्ट हो गया है।
तुम माता अहोई अष्टमी के दिन माता भगवती की शरण लेकर सेह और सेह के बच्चों का चित्र बनाकर उनकी आराधना कर, क्षमा याचना करो, तुम्हारा कल्याण होगा। ईश्वर की कृपा से तुम्हारा पाप समाप्त हो जायेगा। साहूकार की पत्नी ने वृद्ध महिला की बात मानकार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का व्रत कर माता अहोई की पूजा की। वह हर वर्ष नियमित रूप से ऎसा करने लगी। समय के साथ उसे सात पुत्रों की प्राप्ति हुई, तभी से अहोई व्रत की परम्परा प्रारम्भ हुई है।
अहोई माता की आरती
जय अहोई माता, जय अहोई माता!
तुमको निसदिन ध्यावत हर विष्णु विधाता। टेक।।
ब्राह्मणी, रुद्राणी, कमला तू ही है जगमाता।
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता।। जय।।
माता रूप निरंजन सुख-सम्पत्ति दाता।।
जो कोई तुमको ध्यावत नित मंगल पाता।। जय।।
तू ही पाताल बसंती, तू ही है शुभदाता।
कर्म-प्रभाव प्रकाशक जगनिधि से त्राता।। जय।।
जिस घर थारो वासा वाहि में गुण आता।।
कर न सके सोई कर ले मन नहीं धड़काता।। जय।।
तुम बिन सुख न होवे न कोई पुत्र पाता।
खान-पान का वैभव तुम बिन नहीं आता।। जय।।
शुभ गुण सुंदर युक्ता क्षीर निधि जाता।
रतन चतुर्दश तोकू कोई नहीं पाता।। जय।।
श्री अहोई माँ की आरती जो कोई गाता। उर उमंग अति उपजे पाप उतर जाता।। जय।।
अहोई अष्टमी उघापन विधि
जिस स्त्री का पुत्र न हो अथवा उसके पुत्र का विवाह हुआ हो, उसे उघापन अवश्य करना चाहिए। इसके लिए, एक थाल मे सात जगह चार-चार पूरियां व हलवा रखना चाहिए। इसके साथ ही पीत वर्ण की पोशाक-साडी, ब्लाउज व रुपए आदि रखकर श्रद्धा पूर्वक अपनी सास को उपहार स्वरूप देना चाहिए। उसकी सास को चाहिए कि वस्त्रादि अपने पास रखकर शेष सामग्री हलवा-पूरी आदि को अपने पास पड़ोस में बांट दे। यदि कोई कन्या हो तो उसके यहां भेज दे।
अहोई अष्टमी पूजा मुहूर्त
अहोई अष्टमी पूजन का शुभ मुहूर्त शाम 5 बजकर 44 मिनट से रात 07 बजकर 00 मिनट तक है। तारों को देखने के लिये साँझ का समय 6:08 से
अहोई अष्टमी के दिन चन्द्रोदय समय
इस वर्ष अहोई अष्टमी के दिन चंद्रमा मध्यरात्रि के समय दिखाई देगा, इस दिन देर रात 11 बजकर 16 मिनट पर चंद्रोदय होग। ऐसे में अधिकांश व्रत करने वाले तारों को देखने के बाद पारण कर लेती हैं। अधिकतर जगहों पर तारों को देखकर ही व्रत पूरा करने की परंपरा है।
राशि के अनुसार पुत्र प्राप्ति के कुछ उपाय
17 अक्टूबर को चन्द्रमा पूनर्वसु नक्षत्र में संचार करेंगे और मिथुन राशि में गोचर कर रहे होंगे। ऐसे में यदि राशि के अनुसार पूजा की जाए तो इसके बेहतर लाभ मिलेंगे।
मेष- चंद्रमा का तीसरा गोचर होगा, जिससे सुख की वृद्धि होगी। सौभाग्य की प्राप्ति के लिए माता को सिंदुर एवं श्रृंगार का सामान अवश्य चढ़ाएं। इस राशि की निःसंतान महिलाओं को अहोई अष्टमी का निर्जला व्रत रखकर अहोई माता को लाल फूल और भात अर्पित करना चाहिए। गुड़हल का फूल चढ़ाना शुभ होता है। ऐसा करने से संतान सुख प्राप्त होता है।
वृष- चन्द्रमा का दूसरा गोचर होने के कारण यह संकल्प शक्ति बढ़ाने वाला होगा इसलिए भगवान शिव को सफेद चंदन, अक्षत अवश्य अर्पित करें। वृषभ राशि की महिलाओं को इस दिन अहोई माता को घी में बने सूजी के हलवे का भोग लगाना चाहिए। यह उपाय करने से आंगन में जल्द ही किलकारियां गूंजने लगेंगी।
मिथुन- चन्द्रमा का पहला गोचर होने के कारण माता को दक्षिणा और लाल रंग की मिठाई देने से आपके घर में भी धन-धान्य की कमी नहीं होगी। इस राशि के जातकों को निर्जला व्रत रखकर भगवान गणेश की विधि विधान से पूजा करनी चाहिए और अहोई माता को बिल्वपत्र अर्पित करनी चाहिए। लगातार पैंतालीस दिन तक यह उपाय करने से आपकी सूनी गोद हरी हो जाएगी।
कर्क- चन्द्रमा का बारहवां गोचर होने के कारण रोग भय होगा, इस कारण व्रत के दौरान महामृत्युंजय की एक माला का जाप अवश्य करना चाहिए सर से 11 बार नारियल उसारके शिव मंदिर में छोड़कर आये पीछे पलट कर ना देखें। महिलाओं को इस दिन उपवास रखकर अहोई माता को पूरी और मीठे पुए बनाकर भोग लगाना चाहिए और गरीब बच्चों में प्रसाद बांटना चाहिए। यह उपाय करने से घर में किलकाली गूंजती है।
सिंह- चन्द्रमा का ग्यारहवा गोचर होने के कारण अाजवीन लाभ के लिए माता पार्वती को सफेद पुष्प की माला के साथ सफेद मिष्ठान्न अर्पित करें। इस राशि की निःसंतान महिलाओं को निर्जला व्रत रखकर अहोई अष्टमी के दिन भगवान गणेश को दुर्वा अर्पित करना चाहिए। इसके बाद गौरी माता की सिंघाड़े से पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से संतान का योग बनता है और गोद हरी हो जाती है।
कन्या- दसवां गोचर होने के कारण कामकाजी महिलाओं को कार्यक्षेत्र में बरकत के लिए यथाशक्ति श्रृंगार सामग्री एवं गन्ने का रस अर्पिण करना चाहिए। महिलाओं को इस दिन अहोई माता को सफेद फूलों की माला पहनानी करनी चाहिए। ऐसा करने से अहोई माता प्रसन्न होती हैं और वांछित फल की प्राप्ति होती है।
तुला- नवां गोचर होने के कारण धर्म की वृद्धि के लिए खुद के साथ ही दूसरों को भी कथा सुनाएं एवं गुरु या गायत्री मंत्र का यथा सार्मथ्य जाप करें। इस राशि की महिलाओं को मां गौरी को श्रृंगार की सभी वस्तुएं अर्पित करनी चाहिए और सच्चे मन से संतान सुख की प्राप्ति के लिए कामना करनी चाहिए। माता की कृपा से सुंदर और सुयोग्य संतान की प्राप्ति होती है।
वृश्चिक- आठवां गोचर होने के कारण मन में व्याकुलता बनी रहेगी। इस कारण एकाग्रचित्त होकर भगवान शिव के पंचाक्षरी, एव महामृत्युंजय मंत्र का जप और अखंडित चावल का दान करना चाहिए। महिलाओं को निर्जला उपवास रखकर अहोई माता को पीले फूलों की माला भी अर्पित करनी चाहिए। अहोई अष्टमी के दिन यह उपाय करने से संतान सुख प्राप्त होता है।
धनु- सातवां गोचर होने के कारण सांसारिक सुखों की कामना होगी। ऐसे में माता को घर में बना हुआ मीठा पकवान, पूआ या खीर अर्पित करना चाहिए। इससे अहोई माता प्रसन्न होती हैं और आपके घर सुंदर संतान का जन्म होगा।
मकर- छठा गोचर होने के कारण शत्रुओं या विपत्तियों पर विजय प्राप्त करने के लिए माता को आलता (हाथ पैर में लगाया जाने वाला लाल रंग) अर्पित करना चाहिए। साथ ही निःसंतान महिलाओं को पूरे विधि विधान से अहोई माता की पूजा करने के बाद शाम को पीपल के पेड़ के नीचे दीया जलाकर उसकी परिक्रमा करनी चाहिए। ऐसा करने से संतान सुख मिलता है।
कुम्भ- पंचम गोचर होने के कारण पाप के नाश और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए सिंदुर अर्पित करना चाहिए एवं साबुत चने बंदरो को डाले यथा सामर्थ्य किसी योग्य व्यक्ति को दान भी करें। महिलाओं को इस दिन अहोई माता को चंदन का तिलक लगाकर विधिवत पूजा करनी चाहिए। इसके बाद पूरी श्रद्धा से अहोई माता से संतान सुख के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। यह उपाय करने से आपकी सूनी गोद भर जाएगी।
मीन– चन्द्रमा का चतुर्थ गोचर होगा, इस कारण बेहतर स्वास्थ्य के लिए रस वाले फल का भोग लगाना चाहिए। कर्क राशि की महिलाओं को संतान प्राप्ति के लिए अहोई अष्टमी के दिन चांदी के नौ मोती लेकर उसकी माला बनाकर अहोई माता को अर्पित करने चाहिए। ऐसा करने से आपको निश्चित ही संतान की प्राप्ति हो जाएगी।
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