December 17, 2025

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कवि जीके पिपिल की गज़ल … सुन सको तो सुन लो ख़ामोशी अल्फाज हुऐ जाते हैं

जीके पिपिल
देहरादून, उत्तराखंड


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गज़ल

वो मेरे ख़्वाबों खयालों की एक परवाज़ हुऐ जाते हैं
ज़िक्र करूं जब भी मैं इसका तो नाराज़ हुऐ जाते हैं

क्या बताऊं मोहब्बत में हो गया है कुछ ऐसा आलम
सुन सको तो सुन लो ख़ामोशी अल्फाज हुऐ जाते हैं

जीवन मेरा अब उनके बिन नामुमकिन सा लगता है
जैसे हम कोई बीमारी हैं और वो इलाज़ हुऐ जाते हैं

शीशे जैसे बदन में उनका दिल भी है कच्चे शीशे सा
जिसके कारण छेड़छाड़ पर भी नासाज हुऐ जाते हैं

प्यार मोहब्बत की अपनी भी एक नई भाषा होती है
जिसको लब नहीं दिल बोले वो आवाज़ हुऐ जाते हैं

चाहे कोई पढ़े छिपाकर प्यार मोहब्बत के अफसाने
लेकिन राजदार बनतीं शब दिन हमराज हुऐ जाते हैं

फैल रहा है दायरा उनका अपने तो जीवन में इतना
वो अपनी तो सारी दुनियां सारा समाज हुऐ जाते हैं।

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