-झील बनने का मुख्य कारण सड़क कटिंग से आया हुआ मलबा है। झील लगभग 100 मीटर लंबी और 3.5 मीटर गहरी है। झील में लगभग 7875 घन मीटर पानी जमा होने का अनुमान है।
डोईवाला ब्लॉक के रानीपोखरी न्याय पंचायत क्षेत्र के सूर्यधार बांध से लगभग 3 किमी आगे सैबुवाला गांव के पास बनी कृत्रिम झील तबाही का कारण बन सकती है। झील का निर्माण पीएमजीएसवाई खंड नरेंद्रनगर के अंतर्गत इठराना-कालबना-कुखुई-मोटर मार्ग के निर्माण कार्य से निकले मलबे के नदी में गिराने के कारण हुआ है। इससे नदी का प्रवाह आंशिक रूप से रुक गया है। यदि झील के दूसरे किनारे पर इस प्रकार की स्थिति पैदा होती है तो दिल्ली-यमुनोत्री हाईवे के धंसने का खतरा पैदा हो सकता है।
उत्तराखंड में 2013 में आई जलप्रलय ने तबाही मचाई थी, जिसके जख्म आज भी नहीं भरे है। सोमवार को सिंचाई खंड देहरादून, पीएमजीएसवाई खंड, देहरादून व नरेंद्रनगर के साथ राजस्व विभाग के अधिकारियों ने मौके पर झील का संयुक्त निरीक्षण किया। तहसीलदार मोहम्मद शादाब ने बताया कि झील लगभग 100 मीटर लंबी और 3.5 मीटर गहरी है। झील बनने का मुख्य कारण सड़क कटिंग से आया हुआ मलबा है। झील में लगभग 7875 घन मीटर पानी जमा होने का अनुमान है। झील को चौड़ी कर जमा पानी को निकालने पर विचार चल रहा है।
तहसीलदार ने कहा कि मानसून काल शुरू हो चुका है। यदि भारी बारिश हुई तो मलबा जाखन नदी पर निर्माणाधीन पुल तक पहुंच सकता है। संभावना है कि भारी बारिश से जाखन नदी का प्रवाह अवरुद्ध हो सकता है। जिससे डाउनस्ट्रीम के सैबुवाला, खरक, कैरवान, मालकोट, सूर्यधार बांध, रानीपोखरी ग्रांट आदि गांवों/सड़कों को नुकसान की आशंका है।
पीएमजीएसवाई नरेंद्रनगर खंड को मलबा निस्तारित करने के लिए प्रभावी कार्रवाई के लिए कहा गया है। वहीं, विकासनगर में हाल ही में बने व्यासी जलविद्युत परियोजना के बांध के मुहाने के पास पानी रोकने के लिए बनाई गई सुरक्षा दीवार (वायरक्रेट) जलस्तर बढ़ने से धंस गई। हालांकि, अधिकारियों का दावा है कि यह सामान्य प्रक्रिया है।
ग्रामीणों का आरोप है कि करोड़ों की लागत से बनी परियोजना के शुरू होते ही निर्माण का ध्वस्त हो जाना गुणवत्ता को संदेह के घेरे में ला रहा है। ग्रामीणों ने क्षेत्रवासियों की सुरक्षा के मद्देनजर निर्माण की जांच की मांग की है। व्यासी बांध में पानी का लेवल मेंटेन होने के बाद अप्रैल में परियोजना से बिजली का उत्पादन शुरू हो गया था। लेकिन, परियोजना के शुरू होने के 4 महीनों के अंदर ही गेट के पास झील के किनारे सुरक्षा दीवार धंस गई।
इस घटना को लेकर ग्रामीण जलविद्युत निगम पर सवाल उठा रहे हैं। क्षेत्रवासी नरेश चौहान, राजपाल तोमर, सरदार सिंह, रमेश चौहान, भाव सिंह तोमर का कहना है कि वायरक्रेट झील की सुरक्षा दीवार है। 4 या 5 महीने में ही वायरक्रेट या सुरक्षा दीवार का धंसना गंभीर विषय है।
ग्रामीणों का कहना है कि यदि झील के दूसरे किनारे पर इस प्रकार की स्थिति पैदा होती है तो दिल्ली-यमुनोत्री हाईवे के धंसने का खतरा पैदा हो सकता है। उनका कहना है कि वायरक्रेट के निर्माण की जांच होनी चाहिए। उधर, व्यासी परियोजना के अधिशासी निदेशक राजीव अग्रवाल का कहना है कि वायरक्रेट धंसना एक सामान्य प्रक्रिया है। इसकी निगरानी की जा रही है।
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