डा. विद्यासागर कापड़ी
देहरादून, उत्तराखंड

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(चलूँ सतत शुभ पाथ)
( १ )
जीवन डोरी सौंप दी,
मोहन तेरे हाथ।
तेरे कारण ही सदा,
चलूँ सतत शुभ पाथ।।
चलूँ सतत शुभ पाथ,
सभी का बनूँ सहाई।
दिखे जहाँ भी बैर,
नेह से पाटूँ खाई।।
कह सागर कविराय,
सुनो जी श्याम, किशोरी।
ले जाओ जिस ओर,
पकड़ लो जीवन डोरी।।
( २ )
मम विनती सुन लीजिये,
हे दीनन के नाथ।
तजूँ कपट, छल मैं सदा,
चलूँ सतत शुभ पाथ।।
चलूँ सतत शुभ पाथ,
रहो तुम मेरे उर में।
जीवन का संगीत,
बजे प्रभु पावन सुर में।।
कह सागर कविराय,
न देखो मेरे अवगुन।
झट से आना नाथ,
सदा ही मम विनती सुन।।
©️डा. विद्यासागर कापड़ी


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