जीके पिपिल
देहरादून, उत्तराखंड
गज़ल
पशोपेश में हैं अब किसका इंतिखाब करें
बेताब हर ज़र्रा है किसको आफ़ताब करें।
जुगनू हड़ताल पर हैं तारे सब छुट्टी पर हैं
वो चाहें तो उनका चेहरा ही महताब करें।
देखने में ही पूरी ज़िंदगी गुजर गई अपनी
अब ख़्वाब में ही तामीर सभी ख़्वाब करें।
हर सांस ही मेरा बन चुका है एक सवाल
तो क्या बताएं किस किसका जवाब करें।
आज़कल वो मिलने से कतराता रहता है
उसको किस सूरत मिलने को बेताब करें।
जो पत्थर एक सदी से बुनियाद में गड़े हैं
उन्हें निकालकर इमारत का महराब करें।
हम तेरी आंखों को ही बनाकर मयखाना
क्यों ना अब तेरी नज़र को ही शराब करें।
वस्ल की सेज़ पर जो बबूल भी ना हुआ
अब उसे कैसे हम मज़ार का ग़ुलाब करें।
किसी के नहीं होने से जीवन नहीं रुकता
उसके नहीं होने से क्यों मज़ा ख़राब करें।
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