-उत्तराखंड ग्राम पंचायत विकास अधिकारी एसोसिएशन ने इस निर्णय का स्वागत किया है। सतपाल महाराज ने कहा कि विभागीय मंत्री की अनुमति के बिना कोई भी निर्णय करना अनुचित है।
पंचायतीराज मंत्री सतपाल महाराज के हस्तक्षेप के बाद ग्राम पंचायत विकास अधिकारी व ग्राम विकास अधिकारी के फंक्शनल मर्जर के शासनादेश स्थगित कर दिया गया है। बुधवार को जारी बयान में महाराज ने कहा कि विभागीय मंत्री की अनुमति के बगैर कुछ भी निर्णय ले लिए जाएं, राज्य में अधिकारियों का ऐसी संस्कृति को बढ़ावा देना उचित नहीं है।
महाराज ने कहा कि बिना उनकी व उनके विभाग की अनुमति के गत 16 जनवरी को दो शासनादेश जारी किए गए। शासनादेश संख्या-1 के तहत विकासखंड स्तर पर विभिन्न विभागों के खंड स्तरीय कार्मिकों को खंड विकास अधिकारी के प्रशासनिक नियंत्रण में रखने और शासनादेश संख्या-2 के तहत प्रत्येक ग्राम पंचायत में ग्राम पंचायत विकास अधिकारी व ग्राम विकास अधिकारी में से किसी एक अधिकारी की तैनाती कर दोनों पदों का कार्यात्मक विलय करने का निर्णय लिया गया था। मेरे हस्तक्षेप के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मामले का संज्ञान लेते हुए उक्त दोनों आदेश स्थगित कर दिए गए हैं।
पंचायतीराज मंत्री सतपाल महाराज ने कहा कि उक्त दोनों आदेश संविधान के 73वें संशोधन में वर्णित 29 विषयों को पंचायतों को हस्तांतरित करने के प्रयास की दिशा में अवरोध थे, इसके अलावा पंचायतीराज विभाग के कर्मचारियों ने भी दोनों शासनादेश को निरस्त करने के लिए कार्य बहिष्कार शुरू दिया गया था। इसलिए मुख्यमंत्री को वस्तु स्थिति से अवगत कराया गया। अब दोनों आदेश स्थगित कर दिए गए हैं। उत्तराखंड ग्राम पंचायत विकास अधिकारी एसोसिएशन ने भी सरकार के इस निर्णय का स्वागत किया है।
महाराज ने कहा कि उन्हें आपत्ति इस बात की है कि उनसे और उनके मंत्रालय से इस संबंध में कुछ पूछा ही नहीं गया। जबकि, कोई भी निर्णय चाहे अच्छा हो या बुरा इस संबंध में पहले संबंधित मंत्री से पूछा जाना चाहिए था। उन्होंने कहा कि सहकारिता मंत्री धन सिंह रावत के सहकारिता के कार्यों को भी बिना उनसे पूछे बीडीओ के अधीन कर दिया गया। ऐसी संस्कृति को बढ़ावा देना सर्वथा गलत है।
महाराज ने कहा कि ऐसी विसंगति पैदा न हो इसलिए दोनों विभागों का एक ही सचिव होना चाहिए। अधिकारी मनमानी न करें, इसीलिए वह अधिकारियों की एसीआर लिखने की भी बात बार-बार कह रहे हैं।
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