December 24, 2024

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कवि/शाइर जीके पिपिल की एक कव्वाली … किसी काम का नहीं है ये ज़माना

जीके पिपिल
देहरादून, उत्तराखंड


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क़व्वाली

किसी काम का नहीं है ये ज़माना
बेकार का यहां है आना जाना
ये पड़ाव है नहीं है कोई मंजिल
कुछ देर का है तेरा ये ठिकाना

हसरतें आदमी की मनचली हैं
और ज़माने की मिट्टी दलदली हैं
हो मुनासिब तभी पग बढ़ाना
किसी काम………

जितनी जल्दी हो निकलो यहां से
ज़िंदगी के हर एक इम्तिहां से
इसमें क्या जोड़ना क्या घटना
किसी काम………

आसमां क्या किसी से झुकेगा
जिसको जाना है वो ना रुकेगा
इसमें बनता है सब कुछ बहाना
किसी काम………..

सत्य कड़वा है पच ना सकेगा
जिसको मरना है बच ना सकेगा
मौत का हर तरफ है निशाना
किसी काम……….

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