रूही का़दरी
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आश्चर्य नहीं होता
आश्चर्य नहीं होता….
जब देखती हूं तुम्हें असहज परिस्थितियों में भी सहजता से मुस्कुराते हुए।
हार -जीत के मन्थन से परे, परिवार के सुख के लिए अपने सपनों को गंवाते हुए।
आश्चर्य नहीं होता…..
जब तुम रखती हो अपनी अभिलाषाओं की मृत्यु शैय्या पर अपने घरौंदे की अजीर्ण नींव
और सीमित कर लेती हो अपनी दुनिया को दहलीज के इस पार
मान लेती हो कुल के मान-सम्मान को अपना मौलिक दायित्व।
आश्चर्य वास्तव में नहीं होता….
जब दबा लेती हो तुम अपने मन की चित्कार को अपने ही मन में
छुपा लेती हो अपनी हर पीड़ा को अपने पल्लू की कतरन में।
आश्चर्य नहीं होता…..
जब ओढ़ लेती हो तुम शर्म का आंचल अपने लावण्य के तेज को बचाने के लिए
और प्रतिबद्ध करती हो स्वयं को विवाह प्रतियोगिता में पूर्ण अंक पाने के लिए।
आश्चर्य नहीं होता…..
जब तुम निभा लेती हो बड़ी कुशलता से अनगिनत चरित्र एक ही जीवन में
और मौन कर देती हो उन शब्द बाणों को जो यदा-कदा लगे रहते हैं तुम्हारे चरित्र हनन में।
आश्चर्य नहीं होता आज भी…..
जब तुम दहलीज़ के उस पार जा चुकी हो
दुर्लभ सफलताओं के शिखर पर हस्ताक्षर कर चुकी हो
और तो और स्वावलंबी बन चुकी हो
उस तथाकथित एकल आधिपत्य में भी
जहां तुम्हारा प्रवेश वर्जित था
या जिसके योग्य तुम्हें कभी समझा ही नहीं गया।
सच में बिल्कुल आश्चर्य नहीं होता….
क्योंकि यह सिर्फ तुम कर सकती हो
जो अपूर्ण को सम्पूर्ण करती है
सृष्टि का सृजन करती है
क्योंकि…..
सुन्दरता और कोमलता के आवरण में छुपी
शक्ति हो तुम
औरत हो तुम।
और अंत में …….
आश्चर्य तब अवश्य होता है……
जब पुरुष कहता है कि औरत को समझना सबसे मुश्किल काम है
तो पुरुष महोदय,
औरत को समझना मुश्किल नहीं
औरत होना मुश्किल है।
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