सुभाष चंद वर्मा
देहरादून, उत्तराखंड
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कांटा
पर निकलते ही, फुर्र से उड़ गए
तिनके का जिनको, सहारा मिला है
कांटा समझते हैं, अब सब उसको
फूलों को जिसका, सहारा मिला है
चल तो लेते, सब एक साथ मिलकर
राह में सबको, बंटवारा मिला है
पर निकलते ही, फुर्र से उड़ गए
तिनके का जिनको, सहारा मिला है
कल तक जहां, निवाला पका था
आज वो चूल्हा, खाली पड़ा है
बच्चे थे सियासत, समझ न पाए
गरीबी को अमीरी से पाला पड़ा है
सालों से जिसको, तराशा गया था
रास्ते में पत्थर, बन कर मिला है
पर निकलते ही, फुर्र से उड़ गए
तिनके का जिनको, सहारा मिला है
बहरूपियों की, नुमाइश में अब तो
हर उम्र का दूल्हा, साज कर खड़ा है
पर निकलते ही, फुर्र से उड़ गए
तिनके का जिनको, सहारा मिला है
कांटा समझते हैं अब सब, उसको
फूलों को जिसका, सहारा मिला है।
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