भगवद् चिंतन … सद्कर्म
जिस प्रकार असली फूलों को इत्र लगाने की जरूरत नहीं होती वो तो स्वयं ही महक जाया करते हैं। उसी प्रकार अच्छे लोगों को किसी प्रशंसा की जरूरत नहीं होती। वो तो अपने श्रेष्ठ कर्मों की सुगंधी से स्वयं के साथ-साथ समष्टि को महकाने का सामर्थ्य रखते हैं।
इत्र की खुशबु तो केवल हवा की दिशा में बहती है मगर चरित्र की खुशबु वायु के विपरीत अथवा सर्वत्र बहती है। अपने अच्छे कार्यों के लिए किसी से प्रमाण-पत्र की आस मत रखो। आपके अच्छे कर्म ही स्वयं में सर्वश्रेष्ठ प्रमाण-पत्र भी हैं। आपके चाहने से आपको कोई पुरस्कार मिले या नहीं मगर आपके अच्छे कर्मों के फलस्वरूप एक दिन उस प्रभु द्वारा आपको अवश्य पुरस्कृत और सम्मानित किया जायेगा।
पानी पीने से प्यास स्वतः बुझती है, अन्न खाने से भूख स्वतः मिटती है और औषधि खाने से आरोग्यता की प्राप्ति स्वतः हो जाती है। इसी प्रकार अच्छे कर्म करने से जीवन में श्रेष्ठता आती है और समाज में आपका सम्मान स्वतः बढ़ जाता है। अतः सम्मानीय बनने के लिए नहीं अपितु सराहनीय करने के लिए सदा प्रयत्नशील रहें।
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