-मंगलवार को खंडपीठ ने प्राथमिक विद्यालयों में सहायक अध्यापक पद के लिए बीएड समेत स्नातक में 50 प्रतिशत अंकों की बाध्यता को समाप्त करने सबंधी 50 से अधिक याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई की। खंडपीठ ने सामान्य अभ्यर्थियों के मामले पर सुनवाई करते हुए एनसीटीई से पूछा है कि आपने कक्षा 6 से 8 तक के अध्यापकों की नियुक्ति के लिए 50 प्रतिशत अंकों की बाध्यता नहीं रखी है, परन्तु प्राथमिक शिक्षकों की नियुक्ति पर क्यों रखी है।
(Uttarakhand Meemansa news)। हाईकोर्ट ने प्राथमिक विद्यालयों में सहायक अध्यापक पद के अभ्यर्थियों को बड़ी राहत दी। वरिष्ठ न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी और न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने मंगलवार को महत्वपूर्ण सुनवाई करते हुए राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) की गाइड लाइन्स के तहत एसटी, एसटी व दिव्यांगों को पांच फीसदी छूट देने के आदेश दिए हैं। कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि उन्हीं अभ्यर्थियों की यह छूट मिलेगी, जिन्होंने स्नातक और बीएड में 45 फीसदी से अधिक अंक अर्जित किए हों।
मंगलवार को खंडपीठ ने प्राथमिक विद्यालयों में सहायक अध्यापक पद के लिए बीएड समेत स्नातक में 50 प्रतिशत अंकों की बाध्यता को समाप्त करने सबंधी 50 से अधिक याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई की। खंडपीठ ने सामान्य अभ्यर्थियों के मामले पर सुनवाई करते हुए एनसीटीई से पूछा है कि आपने कक्षा 6 से 8 तक के अध्यापकों की नियुक्ति के लिए 50 प्रतिशत अंकों की बाध्यता नहीं रखी है, परन्तु प्राथमिक शिक्षकों की नियुक्ति पर क्यों रखी है। इसके पीछे क्या अवधारणा रही है, 4 सप्ताह के भीतर कोर्ट को बताएं।
सुनवाई के दौरान मुख्य स्थायी अधिवक्ता सीएस रावत ने कोर्ट को बताया कि एनसीटीई ने एससी, एसटी व दिव्यांग वर्ग के अभ्यथियों को 5 प्रतिशत की छूट दिए जाने के लिए गाइड लाइन जारी की है। जिसके आधार पर राज्य सरकार छूट देगी।
अंक की बाध्यता हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के विपरीत
याचिकाओं में कहा गया है कि राज्य के प्राथमिक विद्यालयों में सहायक अध्यापक पद के लिए एनसीटीई व राज्य सरकार ने बीएड और स्नातक में 50 प्रतिशत अंक की बाध्यता रखी है। जो कि हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के विपरीत है। राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के आदेशों का पालन करते हुए बीएड व स्नातक में 50 प्रतिशत अंकों की बाध्यता को समाप्त करने के आदेश दिए जाएं। पूर्व में हाईकोर्ट ने 50 प्रतिशत से कम अंक अर्जित करने वाले अभ्यर्थियों को परीक्षा में शामिल करने के आदेश दिए थे, परन्तु परीक्षा परिणाम घोषित करने पर रोक लगाई हुई थी।
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