वीरेन्द्र डंगवाल “पार्थ”
देहरादून, उत्तराखंड
9412937280
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नयन नयन मिले, नयन कमल खिले
नयन ही नयन में, हो गया चयन है।
मीत बनकर कोई, नयन में बस गया
दिन रैन बीत रहे, होता न शयन है।
जनम जनम तक, नेह की ये डोर रहे
इसको निभाना संग, संग ही अयन है।
प्रीत के पराग यह, हुए अंकुरित हैं जो
पुण्य का प्रसाद तुम, बोलते नयन है।।
*अयन- चलना, यात्रा
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चंचल चपल बन, मन तो मचलता है
साथ प्रियतम का हो, रुत बरसात की
तम डाल देता डेरा, धरती आकाश तक
छटा ही निराली होती, पूनम की रात की
मीठे बोल बोलते हैं, भाव सब तोलते हैं
महक निराली होती, सजन की बात की
खुशियों से भरा रहे, आंचल सदा ये मेरा
जीवन में बनी रहे, लालिमा प्रभात की
17/08/2025


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