December 16, 2025

Uttarakhand Meemansa

News Portal

धराली आपदा : मलबे में दब गए शहीद के परिवार के सपने, सरकार पर टिकी उम्मीदें 

मनोज ने मां की पेंशन के एवज में बैंक से 50 लाख रुपये का ऋण लिया। मनोज का सपना स्थानीय युवाओं को स्वरोजगार देना था, इसी उद्देश्य से धराली में कल्प केदार मंदिर के नीचे सेब के बागानों के बीच जमीन लीज पर लेकर 14 कमरों का रिसॉर्ट बनाया। पांच अगस्त को  खीर गंगा ने तबाही मचाई और रिसॉर्ट देखते ही देखते मलबे में तब्दील हो गया।

उत्तराखंड मीमांसा न्यूज (ब्यूरो)। धराली आपदा में शहीद के परिवार का सपना टूट गया। पिता के शहीद होने के बाद उनकी पत्नी और बेटे ने संघर्ष की राह चुनकर बेहतर जीवन जीने के लिए सपने बुने। जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे। सब कुछ अच्छा चल रहा था। लेकिन, 5 अगस्त को खीर गंगा में आई तबाही ने पल में ही उनके सपनों को उजाड़ दिया।

डुंडा ब्लॉक के मालना गांव निवासी मनोज भंडारी के पिता राजेंद्र मोहन भंडारी आईटीबीपी में सिपाही के पद पर तैनात थे। 28 साल की उम्र में वह 9 मई 1991 को पंजाब में आतंकवादियों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए थे। उस समय मनोज महज ढाई साल के थे और मां कुसुम लता भंडारी 21 साल की। पति की शहादत के बाद मां ने बेटे को पढ़ाया-लिखाया। मां की मेहनत रंग लाई और 2011 में मनोज आईटीबीपी में उप निरीक्षक फार्मासिस्ट बन गए। इस दौरान उन्होंने मध्य प्रदेश, मातली और लद्दाख में सेवाएं दी। 2020 में उन्होंने बीआरएस लेकर उत्तरकाशी लौटने का निर्णय लिया ताकि मां के साथ रहकर उनका और परिवार का बेहतर ख्याल रख सकें।

मनोज ने उत्तरकाशी में मेडिकल व्यवसाय शुरू किया। फिर स्वरोजगार और पर्यटन को बढ़ावा देने का सपना देखा। 2024 में मां की पेंशन के एवज में बैंक से 50 लाख रुपये का ऋण लिया। मनोज का सपना स्थानीय युवाओं को स्वरोजगार देना था, इसी उद्देश्य से धराली में कल्प केदार मंदिर के नीचे सेब के बागानों के बीच जमीन लीज पर लेकर 14 कमरों का रिसॉर्ट बनाया। वहां सात लोग काम करते थे। पांच अगस्त को जिस दिन खीर गंगा ने तबाही मचाई, उस दिन रिसॉर्ट में केवल तीन ही लोग मौजूद थे, जो जान बचाने में सफल रहे, मगर रिसॉर्ट देखते ही देखते मलबे में तब्दील हो गया।

मनोज का कहना है कि पिता का चेहरा उन्होंने कभी ठीक से भी नहीं देखा था। बस तस्वीरों में ही उन्हें पहचाना है। धराली की इस आपदा के बाद अब उनकी स्थिति वैसे ही हो गई जैसे 1991 में पिता के शहीद होने पर थी। परिवार की उम्मीदें अब सिर्फ सरकार की ओर टिकी हुई है कि किस तरह से सरकार प्रभावितों का पुनर्वास करती है।

news