जीके पिपिल
देहरादून
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गज़ल
मैं रास्ते में रुका हूं कई ज़माने से
बुला दो आज़ उसे फिर किसी बहाने से
वो बेनजीर है नायाब है अकेला है
फिर मुझे और क्या लेना किसी ख़ज़ाने से
है नशा आंख में उसकी जो उतरता ही नहीं
पिला दो आज़ मुझे फिर उसी पैमाने से
मैं भी खुश हूं उसका हर सितम सहकर
वो अगर खुश है मुझको यूं ही सताने से
जो दिल का हाल है वो सब नुमाया है
दिल का अब हाल न पूछो किसी दीवाने से।।
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