तेरा वैभव अमर रहे मां हम दिन चार रहें न रहें,
देश भक्ति में लीन हो दिल में खुमार रहे न रहे।
धर्म मज़हब की लड़ाई चल रही है आज दोस्त,
जंग है अस्तित्व के हाथों में हथियार रहे न रहे।
दुःख, दर्द व पीड़ा समाप्त करो तुम संसार से,
ग़मों के आँसू अब किसीके अब्सार रहे न रहे।
कुछ ऐसा काम कर गुज़रो तुम ज़माने के लिए,
भले प्रसिद्धि या ख़बर कोई अख़बार रहे न रहे।
करते रहो पुरानी क़श्ती से तूफ़ानों में सहायता,
फ़क़ीरा भले चाहे तेरी क़श्ती मझधार रहे न रहे।
“पागल फ़क़ीरा”
प्रथम पंक्ति रामप्रसाद बिस्मिल जी की है
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