धर्मेंद्र उनियाल धर्मी
अल्मोड़ा, उत्तराखंड
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न विधायक न मंत्री न सरकारों से रहेगा,
समाज तो जीवित बस संस्कारों से रहेगा।
नेता नहीं सिखाएंगे आदर की परिभाषाएं,
नेता नहीं भरेंगे नन्ही, आंखों में आशाएं,
राजनीति नहीं ह्रदयों में उम्मीद बोएगी
सुख दुःख में नहीं कभी लिपट कर रोएगी।
कर्तव्य श्रेष्ठ रहेगा तो, विचारों से रहेगा।
समाज तो जीवित बस संस्कारों से रहेगा।
संस्कारों के बीज बोना है मां बाप का काम,
गुरु श्रेष्ठ बनकर दें, उन्हें नए नए आयाम,
बच्चों के मन में सहकार का भाव जगाना,
उनकी ऊर्जा सकारात्मक दिशा में लगाना।
आचरण तो उत्कृष्ट, सदाचारों से रहेगा,
समाज तो जीवित बस संस्कारों से रहेगा।
नारी का सम्मान, समाज में शांति लाएगा,
संस्कृति का अपभ्रंश विद्रोह उपजाएगा।
अपनी संस्कृति की विरासत संजोनी होगी
वरना मानव इतिहास में, अनहोनी होगी।
रोगी को आराम तो बस उपचारों से रहेगा
समाज तो जीवित बस संस्कारों से रहेगा।
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