December 25, 2024

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कवि/शाइर जीके पिपिल की गज़ल … आज़ वो किसी तार्रुफ का मोहताज नहीं रहा

जीके पिपिल
देहरादून, उत्तराखंड


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आज़ वो किसी तार्रुफ का मोहताज नहीं रहा
वो अब मुल्क की है अपनी आवाज नहीं रहा

आज़ वो अपने आप में मुमकिन का पर्याय है
अब वो राजनीति का पुराना रिवाज नहीं रहा

आज़ दुनियां में स्वीकार्यता बड़ रही है उसकी
वो अब प्रतिबंधित या छोटी परवाज़ नहीं रहा

वो हराता नहीं विपक्ष अपने कर्मों से हारता है
उसका किसी को हराने का मिजाज़ नहीं रहा

सबका साथ सबका विकास ही धर्म है उसका
देश में उसका अलग से कोई समाज नहीं रहा

प्यार के सभी शब्द उसकी शोभा को बढ़ाते हैं
जो उसको सूट ना हो ऐसा अल्फाज़ नहीं रहा

यूं तो देश के अब तक बहुत से रहनुमा हुऐ हैं
मगर इस स्तर का कोई भी सरताज नहीं रहा

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