–विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस पर संगोष्ठी का आयोजन
(Uttarakhand Meemansa News)। विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस (10 सितंबर) के अवसर पर शैल कला एवं ग्रामीण विकास समिति (1986) के तत्वावधान में वेबिनार के माध्यम से संगोष्ठी का आयोजन किया गया। सर्व प्रथम कार्यक्रम संचालक असिस्टेंट प्रो. विकास जोशी ने अतिथियों का स्वागत किया।
संस्था के संस्थापक अध्यक्ष स्वामी एस. चंद्रा ने संस्था के कार्यकलापों व कार्यक्रम आयोजन करने के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आजकल छोटी-छोटी बातों को लेकर युवा पीढ़ी में सहन शीलता खत्म होती जा रही है। आए दिन आत्महत्या जैसी घटनाएं हो रही हैं I
संगोष्ठी के मुख्यवक्ता वरिष्ठ पत्रकार भगीरथ शर्मा ने कहा कि आत्महत्या की खबरों को जिम्मेदारी के साथ परोसना श्रेयस्कर होगा। ऐसी खबरों को अधिक महत्व न देते हुए उन पर अनावश्यक फालोअप से बचा जा सकता है। आत्महत्या की खबरों में ऐसी भाषा और शीर्षक का प्रयोग भी न हो, जो उसे सनसनीखेज बना दे।ऐसी खबरों की भाषा और शब्दावली ऐसी भी नहीं होनी चाहिए जो आत्महत्या जैसे कायरतापूर्ण कृत्य को किसी समस्या के समाधान के रूप में प्रस्तुत न करे। आत्महत्या के स्थान, उस व्यक्ति के फोटो, वीडियो फूटेज, सोशल मीडिया पोस्ट, टैक्स मैसेज, सुसाइड नोट आदि को प्रकाशित व प्रसारित करने से बचा जा सकता है। ताकि इसका नकारात्मक प्रभाव खबर पढ़ने, देखने, सुनने वालों और अवसादग्रस्त लोगों पर न पड़े।
डॉ. मनीष गुप्ता (डीन) एआई विश्वविद्यालय बरेली, (उत्तर प्रदेश) ने कहा कि भौतिक युग में आवश्यकताएं बढ़ती जा रही हैं। हम उन आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए मानसिक रूप से अपने को कमजोर पाने की स्थिति में गलत कदम उठाने की सोचने लगते हैं। हमें चाहिए बच्चों व परिजनों को परामर्श समय-समय पर देते रहना चाहिए। उन सभी के साथ व्यवहार दोस्ताना रखना होगा जिससे कि वह अपनी समस्याओं को सामने रख सकें। भारत में शैक्षणिक संकट और छात्र आत्महत्या बढ़ती जा रही है, वास्तविक प्रदर्शन अंतर सफलता का अर्थ आज के युवाओं में धैर्य की का स्तर गिरता जा रहा है, हमें छात्र-छात्राओं वह समझने व परिजनों को भी समझने की जरूरत है।
डॉ. रेखा जोशी (मनोविज्ञान) एमबीजी पीजी कॉलेज हल्द्वानी ने कहा कि किसी भी व्यक्ति का जीवन परिवार, समाज व देश के लिए एक अनमोल निधि है। जहां वह परिवार समाज के साथ मिलकर आनंदमय जीवन जीने की इच्छा रखता है, उसी के अनुसार अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति करता है और संघर्ष करता है। लेकिन, जीवन के उतार-चढ़ाव में, भावनाओं में नकारात्मकता आने पर यदि व्यक्ति के जीवन में हताशा और निराशा बढ़ जाए, व्यक्ति को जीवन कठिन और मृत्यु सरल महसूस हो तो ऐसे लोग आत्महत्या को प्रेरित होते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया में प्रति वर्ष 800000 लोग आत्महत्या करते हैं, जिसमें 15 से 29 वर्ष आयु के लोग सबसे ज्यादा हैं। डब्ल्यूएचओ की 9 दिसंबर 2019 की रिपोर्ट के अनुसार स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार के बाद भी हर 40 सेकंड में एक आत्महत्या हो रही है। अधिकांश तो आत्महत्या मायूसी के पलों में होती हैं, जो किसी भी देश समाज के लिए सोचनीय विषय है। व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक समस्याओं को सुलझा नहीं पाता और उन्हें संकट के रूप में देखने लगता है। उस संदर्भ में उसकी भावनाओं में उतार-चढ़ाव आने लगते हैं, उसे अपना भविष्य असुरक्षित महसूस होता है तो ऐसी स्थिति में बहुत सारी मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित विकार उत्पन्न हो जाते हैं। चाहे वह अवसाद हो, फोबिया हो, ओसीडी हो या शिजोफ्रेनिया हो। जो व्यक्ति की जीवन के कष्टमय बना देती है। नशा भी आत्महत्या का एक बहुत बड़ा कारण है, जो व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। यह नकारात्मक प्रभाव लगातार उसकी सोचने समझने की शक्ति या यूं कहें कि उसके इमोशनल इम्यून को कम कर देता है। आत्महत्या जीवन का समाधान नहीं है और आत्महत्या जीवन का पलायन है तो इसे रोकने के लिए हमें बहुत सारे कार्यक्रम करने की आवश्यकता है।
डॉ. संतोष आशीष सहा. निदेशक, केंद्रीय संचार ब्यूरो, (सू. एवं प्र. मंत्रालय, भारत सरकार) देहरादून ने कहा कि वर्तमान परिपेक्ष में बढ़ते प्रतियोगी वातावरण में असफल होने का डर, बढ़ती सुविधाओं को पाने की ललक और धैर्य की कमी बहुत बड़ा कारण है, इसे आत्मसात करने का। कोविड-19 पांडेमिक के बाद बढ़ती बेरोजगारी, गरीबी, कर्ज का बोझ के कारण इसकी संख्या में बढ़ोतरी हुई है किंतु यह कोई हल नहीं है। ऐसे समय में हमें सबसे पहले अपने दोस्तों से, अपने माता-पिता से बात करने का प्रयास करना चाहिए। ध्यान करें कि हम जो कदम उठाने जा रहे हैं उसका नतीजा क्या होगा। क्या हमारी जिंदगी सिर्फ हम तक सीमित है? हमारे बाद हमारे परिवार के मानसिक परल पर क्या गुजरेगी, इस बारे में भी सोचना चाहिए। इसके साथ ही हम माता-पिता, दोस्त या भाई– बहन, शिक्षक से भी अनुरोध करेंगे कि जब किसी के व्यवहार में बदलाव देखे, उन्हें अकेला बिल्कुल न छोड़े, उनके साथ बात करने का प्रयास करें। ध्यान बदलने की कोशिश करें, यह मात्र एक दौर है समय बदलता है, अच्छा समय भी बहुत जल्दी आएगा, बस धैर्य और मेहनत के साथ आगे बढ़ते रहिए। सफलता निश्चित रूप से आपके साथ होगी।
स्वामी ने बताया की संस्था वार्षिक कैलेंडर तैयार करेगी, जिसमें विभिन्न प्रकार की मानव दिवसों पर जन जागरूकता अभियान चलाने व विद्वानजनों से प्रबोधन के लिए निवेदन किया जाएगा। इस अवसर पर भास्कर जोशी, रमेश रावत, डॉ हिमांशु पांडे, किरण कुमार यलुगरी (कर्नाटक) ने समाज में उत्पन्न प्रश्न वक्ताओं के सामने रखें, जिसके पश्चात वक्ताओं ने उनके प्रश्नों के उत्तर संतोष जनक देते हुए समाधान निकालने का प्रयास किया।
असिस्टेन्ट प्रोफेसर विकास जोशी ने
कार्यक्रम का संचालन किया। उन्होने विभिन्न विद्यालयों व विश्वविद्यालयों में इस प्रकार के आयोजन करके युवा पीढ़ी को परामर्श एवं सहयोग के लिए आह्वान किया जाएगा।
कार्यक्रम सयोज़क असिस्टेन्ट प्रोफेसर डा. ललित पंत ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए भविष्य में भी सहयोग के लिए अनुरोध किया। अंत में सभी वक्ताओं को स्मृति चिन्ह के रुप में चिपकों आंदोलन की प्रेरणाश्रोत गौरा देवी का चित्र भेंट किया गया, ज़िसको अतिशीघ्र पहुंचाया जायेगा I
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