भगवद चिन्तन … श्रावण मास शिव तत्व
शिवत्व अर्थात लोक मंगल की वह उच्च मनोदशा, जिसमें स्वयं अनेक कष्टों को सहकर भी दूसरों के कष्टों को मिटाने का हर सम्भव प्रयास किया जाता है। स्वयं खुले आसमान के नीचे जीवन यापन कर रावण को सोने की लंका देने वाले भगवान शिव से श्रेष्ठ इसका कोई उदाहरण नहीं हो सकता।
भगवान शिव भले ही स्वयं फकीरी में रहे। मगर, वाणासुर और रावण जैसे अनेक भक्तों को उन्होंने अनन्त ऐश्वर्य, अनन्त राजसी ठाट-बाट प्रदान किये।
जिसके अंदर लोकमंगल का भाव न हो, जिसकी प्रवृत्ति में परोपकार न हो और जिसका मन किसी की पीड़ा देखकर न पसीजता हो। वह व्यक्ति शिव-शिव कहने मात्र से कभी भी शिव भक्त नहीं हो सकता। जो हर स्थिति में भक्तों का कल्याण करे वह ‘शिव’ और जो कल्याण की भावना रखे वही ‘शिव भक्त’ है।


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