भगवद चिन्तन … अनमोल सीख
जीवन में पद से ज्यादा महत्व पथ का है। इसलिए पदच्युत हो जाना मगर भूलकर भी कभी पथच्युत मत हो जाना। पथच्युत हो जाना अर्थात उस पथ का त्याग कर देना जो हमें सत्य और नीति के मार्ग से जीवन की ऊंचाईयों तक ले जाता है।
पथच्युत होने का अर्थ है, जीवन की असीम संभावनाओं की ओर बढ़ते हुए क़दमों का विषय-वासनाओं की दलदल में फँस जाना। महान लक्ष्य के अभाव में जीना केवल प्रभु द्वारा प्राप्त इस मनुष्य देह का निरादर ही है और कुछ नहीं।
महानता के द्वार का रास्ता मानवता से होकर ही गुजरता है। मानवता की सेवा ही सबसे बड़ा धर्मं और उपासना है। मानवता रुपी पथ का परित्याग ही तो पथच्युत हो जाना है।
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