भगवद् चिंतन … तीन अनमोल सूत्र
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मेहनत करने से दरिद्रता, धर्म करने से पाप और मौन धारण करने से कभी भी कलह नहीं रहता है।
मेहनत – केवल मेहनत करना ही पर्याप्त नहीं अपितु उचित दिशा में अथवा एक ही दिशा में मेहनत करना भी अनिवार्य हो जाता है। उचित समय व उचित दिशा में की गई मेहनत सदैव जीवन उन्नति का मूल होती है।
धर्म – सत्य, प्रेम और करुणा ये धर्म का मूल है। धर्म को समग्रता की दृष्टि से देखा जाए तो परोपकार, परमार्थ, प्राणीमात्र की सेवा, सद्कर्म, श्रेष्ठ कर्म, सद ग्रंथ व तो सत्संग का आश्रय, ये सभी धर्म के ही रूप हैं। जब व्यक्ति द्वारा इन दैवीय गुणों को जीवन में उतारा जाता है तो उसकी पाप की वृत्तियां स्वतः नष्ट होने लगती हैं।
मौन – मौन का टूटना ही परिवार में अथवा समाज में कलह को जन्म देता है। विवाद रूपी विष की बेल काटने के लिए मौन एक प्रबल हथियार है।आवेश के क्षणों में यदि मौन रूपी औषधि का पान किया जाए तो विवाद रू रोग का जन्म संभव ही नहीं। आवेश के क्षणों में मौन धारण करते हुए धर्म मार्ग का आश्रय लेकर पूरे मनोयोग से मेहनत करो, यही सफलतम जीवन का सूत्र है।
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